भारतीय फलित ज्योतिष में प्लूटो आदि ग्रहों का स्थान नहीं है। इसमें कारण उनकी दूरी, प्रकाश की कमी या धीमा होना नहीं है, क्योंकि अन्य ग्रहों की तुलना में शनि बहुत दूर और धीमा ग्रह होते हुए भी अनुपात में अधिक प्रभावशाली है। राहु-केतु तो हैं ही नहीं फिर भी प्रभावित करते हैं। प्लूटो आदि ग्रहों का विचार प्रमाणिक ग्रंथो में नहीं है, इसलिए हम केवल ९ ग्रहों का विचार करते हैं। हालांकि ९ ग्रहों के अतिरिक्त अन्य बहुत से ग्रह-उपग्रह-पिंडों का विचार प्रमाणिक ग्रंथों में मिलता है। लेकिन अभी हम केवल नौ ग्रहों का विचार करेंगे।
ग्रहों के स्वामी देवता व नियंत्रक देवता इस प्रकार हैं
ग्रह देवता नियंत्रक दिशा
१. सूर्य अग्नि सूर्य देव पूर्व
२. चन्द्र वरुण चन्द्र देव वायव्य
३. मंगल कार्तिकेय मंगल देव दक्षिण
४. बुध विष्णु बुध देव उत्तर
५. गुरु इन्द्र बृहस्पति ईशान
६. शुक्र शचि शुक्राचार्य अग्नि
७. शनि ब्रह्मा शनि देव पश्चिम
८. राहु वायु राहु नैर्ऋत्य
९. केतु आकाश केतु ईशान

राहु और केतु की मूलत्रिकोण तथा स्वराशि पर शास्त्रों में बहुत मतभेद है। पाराशर मत से राहु की मूलत्रिकोण राशि मिथुन तथा केतु की धनु है तथा इन्हें मिथुन और मीन राशियों का स्वामित्व प्राप्त है। मैंने जो ऊपर लिखा है यह भी प्रमाणिक ग्रंथो से ही लिया गया है, लेकिन मुझे अपने अनुभव से जिस ग्रंथ में जो ठीक लगा वहां से ले लिया।

6 comments:
is anmol jaankari k liye dhanyavaad
अच्छा ये बताएं कि ज्योतिष से हम लोगों को क्या लाभ होता है।
har kisi se labh hani kee bat thik nahin hoti balak, narayan narayan
ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है.
बे्हतरीन रचना के लिये बधाई। यदि शब्द न होते तो एह्सास भी न होता। मेरे ब्लोग पर आपका स्वागत है। लिखते रहें हमारी शुभकामनाएं साथ है।
बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
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