जेलेटिन (सरेस या श्लेश)
हमारे विदेशी मित्रों की बदौलत आजकल हम मूर्खों के बाज़ार में ऐसे बहुत से उत्पाद हैं जोकि गाय और सूअर के मांस से बने हैं। गलती शत-प्रतिशत हमारी है, क्योंकि बाज़ार में ये सब चोरी छुपे नहीं बिक रहा। लेकिन हमने ही अपनी आँखें बन्द कर रखी हैं, हमने कभी जानने की कोशिश ही नही की। मगर अफ़सोस कि बात यह है कि इसका सम्बन्ध हिन्दू और मुसलमान धर्म से है और आम हिन्दू और मुसलमान यह नहीं जानते। इसलिए उत्पादों को प्रयोग करते हैं या खाते हैं। जैसे कि “जेलेटिन“ इसका प्रचल आजकल बहुत बढ़ गया है और बढ़ता ही जा रहा है। लेकिन आम आदमी यह नहीं जानता कि जेलेटिन (gelatin or gelatine) गाय और सूअर की हड्डी-खाल से बनता है।
ग्लिसरीन और पेपसिन भी ज्यादातर जेलेटिन की तरह ही गाय-सूअर से बनते हैं। इसी प्रकार के और बहुत से रसायन जोकि वास्तव में पशु के शरीर से बने हैं; कुछ-एक शुद्ध शाकाहारी आइस-क्रीमों में भी पाये जाते हैं। बहुत-से साबुन भारतीय बाज़ार में पशुओं की चर्बी से युक्त हैं, जिनमें से कुछ अत्यन्त लोकप्रिय हैं। बहुत-से लोकप्रिय टूथ-पेस्ट भी ग्लिसरीन से युक्त हैं और ग्लिसरीन पर आँखें मून्द कर विश्वास नहीं किया जा सकता। क्योंकि ग्लिसरी भी वास्तव में जेलेटिन का ही दूसरा रूप है। गाय और सूअर की हड्डी और खाल को पानी में उबालने पर जो जेल जैसी परत ऊपर तैरती हुई बनती है, उसे जेलेटिन और उससे निचली परत को ग्लिसरीन कहते हैं। हालांकि पॆट्रोलियम से भी ग्लिसरीन बनाई जाती है।
आप भली-भाँती जानते हैं वर्ना थोड़ा याद करके देखिये, हम ऐसी बहुत-सी दवाइयां खा चुके हैं या खाते हैं जोकि जेलेटिन से कोटेड हैं। आयुर्वेदिक औषिधी भी इससे अछूति नहीं है। मेरे व्यक्तिगत पूछने पर एक प्रतिष्ठित कंपनी (भारत की सुप्रसिद्ध या कहें तो अन्तर-राष्ट्रीय स्तर पर भारत की सबसे प्रतिष्ठित आयुर्वेदिक दवा बनाने वाली संस्था) ने उत्तर में लिखित जवाब दिया कि “फिलहाल, स्थानीय (भारतीय) बाज़ार में हम सख़्त जेलेटिन कैप्सूल का प्रयोग करते हैं, उस जेलेटिन कैप्सूल में गोवंश की हड्डीयों से बना औषधीय स्तर का जेलेटिन होता है“। लेकिन सबसे प्रतिष्ठित आयुर्वेदिक कंपनी की गौमांस-युक्त (गोवंश जेलेटिन) आयुर्वेदिक दवाएं मैने देखी हैं, उन पर नॉनवेज़ का कोई निशान नही है। लेकिन दवा पर जहां शामिल (ingredients or contains) आयुर्वेदिक औषधियों (घटकों) के नाम व मात्राएं लिखी होती है वहां जेलेटिन लिखा है।
कोई उत्पाद यदि नॉन-वेज़ जेलेटिन से युक्त है तो कम-से-कम उस उत्पाद पर नॉन-वेज़ की मुहर तो हो। मैं समझता हूँ कि सभी उत्पादकों को इसका ध्यान रखना चाहिए। रैनबक्सी की जेलेटिन कैपसूल (जेलेटिन-कोटेड) पर बाक़ायदा नॉन-वेज़ का चिह्न बना हुआ है। क्योंकि उन्होने कैपसूल की कोटिंग के लिए मासाहारी जेलेटिन का इस्तेमाल किया है। धन्यवाद ऐसी कंपनियों का जो कम-से-कम नॉनवेज़ की मुहर तो लगा रही हैं।
हालांकि शाकाहारी जेलेटिन भी होती है, मगर बहुत मंहगी होती है, क्योंकि यह शाकाहारी जेलेटिन किसी ख़ास समुद्री घास से बनती है। शाकाहारी जेलेटिन को “कैराज़ीन या ज़ेलोज़ोन” कहते हैं। जोकि अधिकतर “अगर-अगर” नामक समुद्री वनस्पति से बनती है। जबकि साधारण जेलेटिन बूचड़-खाने की फेंकी हुई बेकार की या बहुत सस्ती, बड़ी-बड़ी हड्डीयों और छोटे-छोटे चमड़े के टुकड़ों वगैरा से बनती है। कुछ लोग हिन्दू और मुसलनों की धर्मिक भावनाओं का ख़्याल रखते हुए मछली से भी जेलेटिन बनाते हैं। लेकिन इसे या शाकाहारी जेलेटिन को ख़रीदने के लिए शायद आपको अमेरिका जाना पड़े। क्योंकि शाकाहारी जेलेटिन बहुत मंहगी होती है इसलिए या तो अमेरिका वोलों के लिए ही बनी है या अमेरिकन ही उसे खरीदने की छमता रखते हैं।………..इससे आगे यहाँ पढ़ें और इस लेख का पिछला भाग यहाँ पढ़ें
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