30 May 2009

शाकाहार 4

चीनी

एक बात और बड़े मज़े कि आप से कहता हूँ। क्या आपने बचपन में किसी व्यक्ति से यह सुना था कि “चीनी” गाय की हड्डी से साफ करके बनाई जाती है? आप ने यह सोचा होगा कि वो व्यक्ति मूर्ख है? अगर साफ करने के लिए कोई हड्डी ही चाहिए तो भला गाय की क्यों? सच मानिये, मैंने भी यही सोचा था। लेकिन अफ़सोस, यह सच है। यह हमारे बचपन की बात नहीं है आज भी चीनी सिर्फ “गाय+सूअर” की हड्डी से ही साफ की जाती है। मैं उसी चीनी की बात कर रहा हूँ जो हम प्रति दिन खाते हैं, ख़ास तौर से भारत में, क्योंकि विदेशों में बिना साफ की हुई (भूरी) चीनी बाज़ार में आसानी से मिल जाती है। हम भारतीयों को ही सफेद चीनी खाने की कुछ ज्यादा आदत है। भूरी चीनी में गन्ध भी होती है इसलिए कुछलोग इसे पसंद नहीं करते।
डेढ़ सौ साल पहले तक चीनी शाहाहारी थी लेकिन शायद उस समय भारत में चीनी होती ही नहीं थी। 1822 में एक नये अविष्कार के बाद चीनी मांसाहारी होनी शुरु हो गई। पहले चीनी लकड़ी के कोयले से रगड़ कर चीनी साफ़ करते थे। लेकिन गाय-सूअर की हड्डी-खाल का कोयला चीनी को ज्यादा अच्छी तरह साफ करता है, इसलिए अब केवल गाय-सूअर की हड्डी के कोयले का प्रयोग चीनी साफ करने के लिए होता है।
आपने कभी वोदका की सफाई पर ग़ौर किया? बहुत-सी रूसी वोदका गाय-सूअर की हड्डी से बने जेलेटिन से साफ की जाती है, अर्थात् हिन्दुओं और मुसलमानों के लिए अभक्ष्य है।


वर्क

हम जो अपनी मिठाइयों को सजाने के लिए चाँदी की वर्क का इस्तेमाल करते हैं ये भी गोमांस से युक्त होती है। क्योंकि चाँदी को फैलाकर वर्क बनाने के लिए हथौड़ी से पीटा जाता है। आप अच्छी तरह से जानते हैं कि वर्क बहुत नाजुक होती है। अगर हथौड़ी का सीधा प्रहार करें तो वर्क टूट कर बिखर जाएगी, यदि किसी धातु या किसी और चीज की परत के बीच में रख कर पीटा जाए तो चाँदी धातु से इस प्रकार चिपक जाएगी कि फिर सिर्फ पिघला या खरोच कर ही अलग होगी। इसका अनुभव आप वर्क को छूकर कर सकते हैं। जब हम बर्क को छूते हैं तो हमारी अँगुली से बहुत बुरी (अच्छी) तरह चिपक जाती है। इस समयस्या का एक मात्र उपाय ये है कि चाँदि को गाय की आँतों में लपेट कर हथौड़े से पीटा जाये। इस लिए बर्क बनाने वाले इस एक मात्र उपाय का प्रयोग करते हैं। स्वयं को खुश करने के लिए, आपको ये कल्पना करने की कोई जरूरत नहीं है कि वर्क के तैयार होने पर उसे धोया या साफ किया जाता होगा।…….इससे आगे यहाँ पढ़ें और इस लेख के पिछले अंक यहाँ

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