पिज़्ज़ा या पीज़ा (हार्ड-चीज़)
पश्चिमी फैशन के मारे हुए हमारे हिन्दू भाई बड़े शौक से वेज़ पीज़ा खाते हैं। क्योंकि पीज़ा पर शाकाहार की हरी मुहर लगी होती है। लेकिन बिचारे मासूम ये नहीं जानते कि “वेज़ पीज़ा” नाम की कोई वस्तु इस संसार में है ही नही। क्योंकि पीजा के ऊपर चिपचिपाहट के लिए जो हार्ड चीज़ बिछाइ जाती है, उस हार्ड चीज़ में गाय की आँतें मिली हुई होती हैं। गाय की आँत डाले बिना हार्ड-चीज़ चिपचिपी नहीं बन सकती। पनीर या छैना को गाय की आँतों में पकाने से ही हार्ड-चीज़ बनती है, दूसरा कोई उपाय नहीं है। और बिना हार्ड चीज़ के कोई भी पीज़ा नहीं बन सकता अर्थात् सभी पीज़ा नॉन-वॆज़ (गाय के मांस से युक्त) होते हैं।
चिपचिपाहट के आलावा भी और बहुत से कारण है कि हार्ड चीज़ गौमांस युक्त होती है। सबसे पहले तो दूध को अधिक चर्बी-युक्त बनाने के लिए दूध में गाय की चर्बी मिलाते हैं फिर दूध से पनीर बनाने के लिए बछड़े की आँते दूध में डालते हैं; फिर पनीर को चीज़ में बदलने के लिए गाय की आँतें उसमें डालते हैं। फिर वह हार्ड-चीज़ सुगठित दिखे इसके लिए गाय की हड्डी का चूर्ण हार्ड-चीज़ में मिलाते हैं। इसके आलावा और बहुत-सी उत्पादन की बारीकियाँ है जिसके लिए गौमांस हार्ड-चीज़ में मिलाना जरूरी होता है।
यदि पीजा घर में बनाया जाए तो शाकाहारी भी हो सकता है। क्योंकि हम हार्ड-चीज़ की जगह पर कोई/किसी दूसरी चीज़ का प्रयोग कर सकते हैं। लेकिन हार्ड-चीज़ के आलावा अन्य चीज़ भी ज्यादातर गौमांस युक्त है। भारत में शायद अभी संभव नहीं है लेकिन विदेशी बाज़ार में इटली की “मासकरपोने क्रीम-चीज़” मिल जाती है जोकि केवल दुग्ध उत्पाद से बनी है (मासकरपोने आम चीज़ से 4-5 गुना मंहगी होती है)। मैं कई सालों से ऐसी चीज़ की तलाश में हूँ, मुझे इसके आलावा दूसरी कोई चीज़ या चीज नहीं मिली। हर चीज़ में जाने-अंजाने या वज़ह-बेवज़ह गौमांस है। कुछ ऐसी चीज़ कंपनी भी हैं जो गाय की आँतो के साथ-साथ गाय की हड्डी भी चीज़ में डालती हैं। गाय की हड्डी डालने से चीज़ देखने में इकसार लगती है (पीज़े में डलने से पहले)। मूर्खों को पढ़ने में दिक्कत न हो इसलिए पॆकिंग के ऊपर गाय की हड्डी को “कॆलसियम क्लोराईड” या “E 509″ लिखा जाता है।
हार्ड-चीज़ जैसी ही एक चीज़ होती जिसे परमिजान कहते हैं, कुछ लोगों को भ्रम है कि परमिजान शाकाहारी है, लेकिन ऐसा नही है। हाँ, शायद एक-आध कंपनी हैं जो कि गाय की आँतों की बजाए बकरे की आँत परमिजान-चीज़ में डालती हैं। लेकिन इसके आलावा और क्या-क्या है उस चीज़ में, इस बारे में मैं अभी संतुष्ट नहीं हूँ। बी.बी.सी. के रसोई वाले जाल पर परमिज़ान को शाकाहारी भाजन में शामिल किया गया है, लेकिन दूसरी जगह उन्होनें स्पष्ट कर दिया गया है कि परमिजान चीज़ हमेशा शाकाहारी नहीं होता।
पनीर
हम जो पनीर बाज़ार से ख़रीद कर खाते हैं वो भी भरोसेमन्द नहीं है। क्योंकि दूध फाड़ कर पनीर बनाने का जो सबसे सफल रसायन है, जिसका इस्तेमाल अधिकांश पेशेवर लोग करते हैं। वो वास्तव में रसायन नहीं बल्कि गाय के नवजात शिशु का पाचन तन्त्र है। अगर हम पनीर बनाने के लिए दूध में नीम्बू का रस, टाटरी या सिट्रिक एसिड डालते हैं तो दूध इतनी आसानी से नहीं फटता जितना कि उस अंजान रसायन से, फिर घरेलू पनीर में खटास भी होती है, बाज़ार के पनीर की तुलना में जल्दी खट्टा या ख़राब हो जाता है। इस रसायन की यही पहचान है कि पनीर जल्दी ख़राब या खट्टा नही होता, और हमारी सबसे बड़ी यह समस्या यह है कि किसी भी लेबोटरी टेस्ट से ये नही जाना जा सकता कि पनीर को बनाने के लिए गाय के शिशु की आँतों का इस्तेमाल किया गया है। क्योंकि गाय के शिशु की आँतें दूध के फटने पर पनीर से अलग हो कर पानी में चली जाती हैं। इसका बहुत कम (नहीं के बराबर) अंश ही पनीर में बचता है। यह पानी जो दूध फटने पर निकलता है इसे विदेशों में मट्ठा या छाज (why) कह कर बेचते हैं। प्रवासी हिन्दु भाई कृपा करके यह विदेशी मट्ठा कभी न ख़रीदें। इसलिए बाज़ारू पनीर (सभी प्रकार के पनीर) से भी सावधान रहें। दूध, क्रीम, मक्खन, दही तथा दही की तरह ही दूध से बने (खट्टे) उत्पादों के अतिरिक्त विदेशों में बिक रहे लगभग सभी अन्य दुग्ध-उत्पाद मांसाहारी हैं। ज्यादातर मरगारीन भी मांसाहारी ही है।…….इससे आगे यहाँ पढ़ें और पिछले लेख यहाँ
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