निर्णय
मैने पहले आरम्भ में ही लिखा था कि शाकाहार या मांसाहार असली समस्या नहीं है इसलिए जितनी चाहो कोला पीयो। लेकिन यदि हम हिन्दू धर्म में आस्था रखते हैं तो हमें किसी भी चीज को अपने (हिन्दू, सनातन) धर्म के अनुसार उसकी श्रेणी में रखना चाहिए। क्योंकि शाकाहार हमारा धर्म या साम्प्रदाय नहीं है। हमारा धर्म है सनातन (हिन्दू), साम्प्रदाय हमारा जो भी हो- शैव, शाक्त, वैष्णव या अन्य कोई भी। हमारे धर्म के अनुसार दूध पीने से हमें कोई दोष नहीं लगेगा। लेकिन अण्डा चाहे fertilised (चूजा निकालने योग्य देशी अण्डा) हो या न (चूजा नहीं निकालने वाला फ्रामी अण्डा) हो, हिन्दू धर्म के अनुसार इसे खाने में दोष है।
परिहार
यूं तो सप्ताह के 7 में से 5 दिन (रविवार, सोमवार, मंगलवार, गुरुवार, तथा शनिवार) दाढ़ी बनाने से भी दोष लगता है। कृष्ण जन्माष्टमी और शिवरात्री का वर्त न रखने से भी पाप लगता है। लेकिन ये दोष और पाप इतने गम्भीर नहीं हैं जितने कि पीज़ा या जेली केक खाने से लगते हैं। पीजा या जेली केक खाने के बाद तो हम उन सभी पापों से मुक्त हो जाते हैं जो हिन्दू धर्म हम पर लगाता है। क्योंकि हम अब मलेच्छ जो जाते हैं। अब हम स्वतन्त्र हैं, कुछ भी खा सकते हैं। क्योंकि हमने जेलेटिन खा लिया है। अब समस्या खुद को अशुद्धता से बचाने की नहीं, समस्या यह हो जाती है कि स्वयं को शुद्ध कैसे करें? प्रायश्चित कैसे करें? हिन्दू धर्म के अनुसार, यदि हम प्रायश्चित न करें तो दूसरे जन्म में दूषित योनि प्राप्त होगी या फिर शारीरिक दोषों से युक्त मनुष्य योनि मिलेगी। जिन पापों का यहां हम विचार कर रहें हैं उनके प्रायश्चित के लिए- चान्द्रायण व्रत, महासांतपन व्रत, सांतपन व्रत, गोदान इत्यादि करना चाहिए।……….इस लेख को आरंभ से पढ़ना चाहते हैं तो यहाँ पर पढ़ सकते हैं।
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