01 December 2008

आतंकवाद और पर्यटन

(Terrorism Vs Tourism : २६-२९ नवम्बर २००८, मुंबई)

ये आतंकवादी हैं तो धर्म और राष्ट्र के आधार पर ही, लेकिन आज दुनिया की प्रत्येक वस्तु का व्यवसायिक करण हो गया है। यदि आतंकवादियों के लिए धर्म और राष्ट्र ही सब कुछ होता तो मुस्लिम देशों और मस्जिदों में आतंकवादी वारदातें न होती। पाकिस्तान के पाँच-सितारा होटल में भी धमाका न हुआ होता। एक धर्म और एक राष्ट्र जिस पर हम इल्ज़ाम लगा रहे हैं, वो इस हमले के लिए ‘जिम्मेदार’ तो हैं लेकिन ‘कारण’ नहीं है, कारण हैं ‘धन्धा’। “गन्दा है, पर धन्धा है ये।“


दुनिया के सभी धनी देशों में पर्यटकों की भरमार रहती है। या ऐसा कहें कि जिस देश में पर्यटकों की भरमार रहती है वह देश धनी हो जाता है। किसी भी देश की संपन्नता का विदेशी पर्यटकों से सीधा संबंध होता है। स्विट्जरलॆन्ड जैसे देश तो केवल पर्यटन के कारण ही धनी हुए। जब देश और उसकी सीमाएं सुरक्षित और शान्त हों तो रक्षा बजट घटता है और पर्यटक बढ़ते हैं। दुनिया का जो भी देश अशान्त व असुरक्षित होता है, वह गरीब हो जाता है। कोई पर्यटक पहले तो सिर्फ एक पर्यटक के रूप में देश को लाभ पहुंचाता है, लेकिन आगे चलकर वो निवेशक भी बनता है।

इस हमले का उद्देश्य भारत में पर्यटकों को आने से रोकना था। यूरोप के पर्यटक गर्मी के मौसम में तुर्की और मिश्र ज्यादा जाते हैं, इस लिए वहां गर्मियों में आतंकवादी हमले होते रहते हैं। हालांकि दोनो ही मुस्लिम देश हैं। इस प्रकार के हमले अकसर सैलानियों के मौसम से कुछ पहले होते हैं, मौसम के बीच में नहीं। जैसा कि इस बार मुम्बई में हुआ।

मुस्लिम आतंकवाद के पोषक तत्त्व पर्यटकों का रुख दुबई की ओर करवाने के लिए हमले करवाते हैं। इसलिए दुबई में आतंकवादी घटनाएं नहीं होती, तभी तो दुनिया भर के अमीर (आराम-पसंद) पर्यटक दुबई में आराम करते हैं। इसी महीने वहां एक नया होटल खुला है, जिसके एक कमरे के एक दिन का कियारा है ढ़ाई लाख रुपये (पाँच हजार यू॰ एस॰ डॉलर)। इस होटल के उद्घाटन पर बीजिंग ऑलम्पिक समारोह से तीन गुना अधिक आतिशबाजी हुई।

पर्यटन के धन्धे वाले लोग केवल आतंकवादी हमले ही नहीं करवाते, पाकृतिक आपदाएं और महामारियां (महामारियों की अफ़वाहें) भी भिजवाते हैं। अब यह गुप्त रहस्य भी नहीं है कि जिस जहाज से आतंकवादी आये थे पहले तो वह चोरी हुआ फिर पाकिस्तानी तट-रक्षकों द्वारा पकड़ा गया। इसके बाद जहाज को सउदी अरब ले जाया गया, सउदी अरब से जहाज ने सफर शुरू किया और, कराची से आतंकवादियों को लादा तब जाकर मुंबई पहुंचा।

पर्यटन की दृष्टी से भारत दुनिया की एक आदर्श भूमि है। यह भूमि पूरी दुनिया के पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है, लेकिन डर के मारे अमीर पर्यटक भारत नहीं आते। आज की हालत देखकर लगता है कि मध्यम और इकॉनामी श्रेणी वाले पर्यटक भी अब आने से घबराएंगे।
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दूसरे पहलु
जैसे अमेरिका ने आतंकवादी हमले के जवाब में अफ़गानिस्तान या ईराक पर हमला किया, हम पाकिस्तान पर नहीं कर सकते। जब अमरीका की आर्थिक स्थिति इससे चरमरा गई तो हमारा क्या होगा? हल तो फिर भी नहीं निकला।

हम अपने नेताओं को भी दोषी नहीं ठहरा सकते, क्योंकि हमने ही उन्हें चुन कर कुर्सी पर बिठाया है। मतलब, नेता लोग जो भी कर रहे हैं हमारे समर्थन से ही कर रहे हैं। यदि नेता दोषी हैं तो, हम उनसे भी ज्यादा दोषी हैं।

सबसे बड़ा दुःख इस बात का है कि जितने आतंकवादी मरे उससे डेढ़ गुणा सुरक्षाकर्मी मारे गए। इसके लिए हमारा सिस्टम जिम्मेदार है। हमें सैनिकों के समर्थन में आन्दोलन करना चाहिए। सैनिकों के हथियार व सुरक्षा उपकरण और बेहतर होने चाहिए।

जब हमला हिन्दु और यहुदियों पर हुआ तो सिर्फ मुसलमान ही क्यों, ईसाइयों को भी तो फ़ायदा होना चाहिए। वो कहते हैं न, किसी बिचारे का घर जला तो पड़ोसी आग में रोटियां सेकने लगे।
इस हमले और शोर-शराबे का फायदा नेता मिडिया और सरकार ने ख़ूब उठाया, लेकिन लगता है सिर्फ दैनिक भास्कर वालों को ही चर्च से फंड नहीं मिलता। इसीलिए ऐसी ख़बर छाप दी… http://www.bhaskar.com/2008/11/29/0811291602_church_blast.html चर्च धमाकों में पकड़े गए ११ या १२ लोगों को मौत की सजा और ११ या १२ लोगों को ही उम्रकैद।

जैसे फिल्म वाले माहौल देख कर फिल्म रिलीज़ करते हैं, वैसे ही न्यायाधीश भी माहौल देख कर निर्णय सुनाते हैं। मुंबई धमाकों के अपराधियों को जब सजा मिली तो सबने हल्ला काटा। क्या प्रेस, क्या नेता, दुसरी कोई ख़बर तो थी ही नहीं। आज वो प्रेस कहां है? मुंबई धमाकों में अदालत ने जितना समय लिया उससे आधे समय में ही चर्च के अपाधियों को सजा मिल गई। अब देखते हैं कि मुंबई के इस हमले में जो एक आतंकवादी जिंदा बच गया है उसे मौत की सजा कब मिलेगी?
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मरम्मत...
(आज 6 मई 2009 की खबर है कि वह बेकसूर है।)