06 May 2009

ज्यतिष विषय प्रवेश

कुछ बाते जो ज्योतिष (Jyotish) के परिचय में लिखनी चाहिए थीं वो मैं यहां लिख रहा हूँ। क्योंकि ये उन्हीं के लिए है जो वास्तव में इस विद्या में रुचि रखते हैं।

. ज्योतिष विद्या सीखने के लिए बहुत धैर्य से लम्बे समय तक अध्ययन करने की आवश्यकता होती है। अध्ययन के बाद अनुभव भी प्राप्त करना होता है।

. अध्ययन और अनुभव के बाद कोई ज्योतिष की फलित विद्या तो सीख सकता है, लेकिन फलादेश करना एक कला है। जिस व्यक्ति के भीतर कलाकार पहले से हो वही साधक कोई कला सीख सकता है।

. विद्या तो स्वयं पुस्तक पढ़कर सीखी जा सकती है, लेकिन कला के लिए गुरु के दिशा निर्दश, उपदेश, संरक्षण, आशीर्वाद और फलित करने की अनुमति जरूरी है।

. ज्योतिष विज्ञान है, विज्ञान के क्षेत्र में अभ्यास जरूरी नहीं। फलित-ज्योतिष विज्ञान पर आधारित कला है, कला सीखने के लिए अभ्यास जरूरी है। जो व्यक्ति एक कला का स्वामी हो वह दूसरी कला बहुत आसानी से सीख सकता है।

. फलादेश की सफलता के बाद भी कुछ ज्योतिषियों को यश नहीं मिलता। यश प्राप्ति के लिए ज्योतिषी की कुण्डली में यश प्राप्ति के योग होना चाहिए। शुक्र की स्थिति अच्छी होनी चाहिए।

. गुरुदेव या इष्टदेव का आशीर्वाद प्राप्त हो तो कला का यश बहुत सरलता से प्राप्त हो जाता है।  

आपने कुछ ऐसे ज्योतिषी भी देखे होंगे जो बिना ज्योतिष-विद्या बिना गुरु कृपा के यश पा रहे हैं। वास्तव में वो यश नहीं अपनी चतुराई से प्रसिद्धि पा रहे हैं। ऐसी प्रसिद्धि अपनी सीमा (मूर्ख यजमान/जातक) में रहती है और समय सीमा भी होती है। कुछ ज्योतिषी ऐसे भी हैं जिनके गुरु तो हैं लेकिन अपने अहंकार का पोषण करने के लिए वे स्वीकार नहीं करते।

आमतौर से दो प्रकार के ज्योतिषी आजकल के बाज़ार में हैं-

पहली श्रेणी में वो पुराने (निडर) ज्योतिषी आते हैं जो जातक को ग्रहों का भय दिखा कर डराते और भावुक करते हैं फिर उनसे जीवन भर पैसे ऐंठते हैं। इसके लिए जातक को दूसरे ज्योतिषियों से भी डरा कर रखते हैं, जिससे कि यजमान कहीं भाग न जाए।

दूसरी श्रेणी उन (डरपोक) ज्योतिषियों की है जो भविष्य के सुन्दर-सुनहरे सपने दिखा कर जातक खुश करते हैं, क्योंकि ये ज्योतिषी तुरन्त दान महा कल्याण में विश्वास रखते हैं। क्योंकि जातक यदि खुश हो जाएगा दो फलित की दक्षिणा ठीक-ठाक दे देगा। इन नये ज्योतिषियों को ये अनुभव नहीं होता कि अगर जातक डर कर भड़क गया को मुट्ठी में कैसे आएगा? आगे चलकर जब दूसरी श्रेणी के नए ज्योतिषियों को किसी भी तरह जातक को फसाने का अनुभव हो जाता है तो वे प्रथम श्रेणी के निडर ज्योतिषी हो जाते है।

जैसे आमतौर पर दो प्रकार के ज्योतिषी है, ज्यादातर जातक भी दो ही प्रकार के हैं, इसीलिए ऐसे ज्योतिषियों से जाकर फंसते हैं। पहली किस्म के जातकों को डरने में मजा आता, क्योंकि वे सहानुभूति चाहते हैं। वो सहानुभूति चाहे स्वयं से ही प्राप्त क्यों न हो। दूसरी किस्म के जाकत प्रशंसा चाहते हैं, चाहे वो आत्म प्रशंसा ही क्यों न हो। अपनी कुण्डली के महा-योग सुनना चाहते हैं, इसीलिए ज्योतिषी के पास जाते हैं।

आप ये न साचें कि अधिकतर जातक इन दो किस्मों के ही हैं तो समझदार जातक कहां से मिलेंगे? ज्योतिषियों को तो यमराज ही बदलेगा लेकिन ये जातक हर समय बदलने के लिए तैयार हैं। इसको बस अच्छे ज्योतिषी का इंतज़ार है। क्योंकि खुले तौर पर न तो कोई सहानुभूति चाहता है और न ही झूठी प्रशंसा।

स्वयं को साधक मानकर ज्योतिष की साधना करें, मन में धैर्य रखें, पूरी महनत करें। लाल किताब बहुत अच्छी पुस्तक है लेकिन जब तक आप फलित की विद्या और कला दोनो न सीख लें लाल किताब को हाथ न लगाएं। फलित ज्योतिष के केवल प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन करें। सबसे पहले बृहद् पाराशर होरा शास्त्र का अध्ययन करें फिर अन्य प्रमाणिक (मानसागरी प्रमाणिक ग्रंथ नहीं है।) ग्रंथों को पढ़ें। जब मूल ज्ञान प्राप्त हो जाए तब नए लेखकों की पुस्तकें भी पढ़ सकते हैं। मेरे हिसाब से तो पिछली शताब्दी के प्रसिद्ध लेखको में केवल भसीन जी ने ही अपनी पुस्तकों में प्रमाणिकता का ध्यान रखा गया है। बाकि आप अपने अनुभवों से पुस्तकों का चयन करें, मगर (मैं बार-बार दोहरा रहा हूँ) ग्रंथो के अध्ययन के बाद ही ज्योतिष की पुस्तके पढ़ें। मुझे आशा है कि प्रज्ञा-पथ के ज्योतिष अध्याय ग्रंथो को समझने में सहायक होंगे।

शुभकामनाएं

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