30 May 2009

शाकाहार 5

इ-नम्बर (E-Numbers)

ऐसे रसायन जिनकों खाद्य पदार्थों में मिलाया जाता है, इनकी संख्या आज 3000 से ज्यादा है। ऐसे ही बहुत से अनगिनत रसायन, वास्तव में रसायन नही जीवों का अंश है, लेकिन उन्हें वैज्ञानिक नाम या नम्बर दे दिये गए हैं। जैसे कि आजकल बहुत से खाद्य उत्पादों पर जहां उत्पाद में शामिल (ingredients or contains) पदार्थों (घटकों) की सूचि होती है, उन में कुछ रंग या रंगों के नम्बर भी लिखे होते हैं और कहीं-कहीं इ-नंबर (“E” Numbers) जैसे- E509, E542, E630-E635 वगैरह सिर्फ नम्बर भी लिखे होते हैं। ये सभी  No. और ये नाम – calcium stearate, emulsifiers, enzymes, fatty acid, gelatin, glycerol, glycine, glyceryl, glyceral, leucine, magnesium stearate, mono and diglyceri, monostearates, oleic acid, olein, oxystearin, palmitin, palmitic acid, pepsin, polysorbates, rennet, spermaceti, stearin, triacetate, tween, vitamin D3 हमारे धर्म के लिए घातक हो सकते हैं। इन अन्जान नम्बरों और नामों से सदैव सावधान रहें।

कोई भी ई-नंबर शाकाहारी है या मांसाहारी यह तो केवल वह कंपनी ही बता सकती है जिसने उसका उत्पाद या निर्माण किया है। क्योंकि एक ही ई-नंबर को कई तरह से बनाया जाता सकता है। एक ही ई-नंबर कोई कंपनी शाकाहारी फार्मूले से बनाती है और दूसरी कंपनी मांसाहारी फार्मूले से।

एक और बात बड़े दुःख के साथ यहां बतानी पड़ेगी कि मधुमेह का इंसुलीन इंजेक्शन भी गाय-सूअर से ही बनता है।

 

अभक्ष्य या मांसाहारी वनस्पति

आजकल तो वनस्पति भी नॉनवेज है। जब साधारण भारतीय वनस्पति से जुड़े जेनेटिक शब्द को सुनता है तो उसके दिमाग में संकर शब्द आता है। वह सोचता है कि जेनेटिक संकर जैसा ही कोई शब्द है, दो विभिन्न वनस्पितयों के जीन मिलाकार कोई नई नस्ल की वनस्पति तैयार करते होंगे। लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। आज विश्व बाजार में सवा सौ से अधिक वनस्पतियां ऐसी हैं जोकि पशुओं से संकरित हैं। यानि मांसाहारी हैं। ख़ास तौर से मांसाहारी टमाटर, आलु, बैंगन, शिमला मिर्च, फूल गोभी, बन्द गोभी आदि अधिक प्रचलन में हैं। सब्जी को अधिक गूदेदार बनाने के उद्देश्य से अधिकतर सब्जियां मांसाहारी बनाई गई हैं अर्थात् उन सब्जियों के बीज में मछली, गाय, सूअर आदि के अंश मिलए जाते है। लेकिन आलु में उस कीड़े के अंश मिलाए जाते हैं जो कीड़ा आलु की फसल को खाता या ख़राब करता है। जिससे की वो कीड़ा उस सजातीय आलु को न खाए।

इन मांसाहारी सब्जियों की एक पहचान यह है कि इनको पकाते समय सुगंध के बजाय दुर्गंध आती है। लेकिन कई बार दुर्गंध साधारण सब्जी से भी आती है, ख़ास तौर से दिल्ली जैसे महानगरों में, क्योंकि कुछ किसान गन्दे (नाले के) पानी से अपने खेत की सिंचाई करते हैं। लोग इन मांसाहारी सब्जियों के लिए जर्मनी को जिम्मेदार मानते हैं, क्योंकि वहीं से सब शुरु हुआ। लेकिन मैं तो इस एक देश नहीं बल्की एक धर्म को इसके लिए दोषी मानता हूँ।

 

फ़ास्ट-फ़ूड

पहली बात यह है कि– फास्ट-फूड केवल पकाले या खाने में ही फास्ट हैं पचनें में “वॆरी स्लो”। हालांकि, फास्ट-फूड पकने से पहले भी बहुत धीमी प्रक्रिया से गुजरते हैं।

विदेशी फ़ास्ट-फ़ूड वालों के यहां मसालेदार खाना भी होता है। आप शाकाहारी हों या नहीं इससे फर्क नहीं पड़ता, यदि आप हिन्दू हैं तो विदेशी मसाले या फारमूले वाला कोई (या कोई भी चीज जिससे आप पूरी तरह परिचित न हों) उत्पाद न खाएँ। चाहे वह विश्व प्रसिद्ध लेबल वाले फिंगर चिप्स हो या लाल लेबल वाला कोला पेय। यदि आप सोंचते हैं कि आप इन दोनो खाद्य पदार्थों से परिचित हैं और खातें हैं तो आप गलती पर हैं। इन दोनों का संयोग दुनिया में प्रसिद्ध है लेकिन यह दोनो ही मांसाहारी है। हालांकि इन दोनो पर शाकाहार का चिह्न भी है और मसालेदार भी नहीं, फिर भी मांसाहारी हैं। मैं जिस चिप्स की बात कर रहा हूँ उसमें गाय के अंश होते हैं इसलिए हम नहीं खा सकते। लेकिन पेय को पीया जा सकता हैं क्योंकि इसकी टक्कर धर्म नहीं शाकाहार से है। इस पेय में एक विशेष कीड़े को मिलाया जाता है जिससे कि लोग फिर लाल-लेबल वाले कोला को ही पीयें। आपने शायद गौर किया हो कि पेप्सी-कैम्पा या दूसरी कोला पीने वाले कट्टर नहीं होते वे अन्य किसी कंपनी की कोला भी पी सकते हैं। मगर लाल-लेबल वाली कोला पीने वाले को दूसरी किसी भी कोला में वो रस (कीड़े का स्वाद) नहीं मिलता इसलिए वे लोग नसेड़ियों की तरह केवल एक ही कंपनी की कोला पीते हैं।

चिप्स के बारे में मैं आपको थोड़ा और बता देता हूँ। पहले यह कंपनी गाय की चर्बी में चिप्स तला करती थी। जैसा की आप जानते हैं कि किसी भी चर्बी में बहुत ज्यादा कैलेस्ट्रॉल होता है। जब लोगों की कॆलट्रॉल के प्रति जागरुकता बढ़ने लगी तो इस कंपनी ने चर्बी में चिप्स तलना छोड़ दिया। लेकिन लोगों को तेल के चिप्स में स्वाद नहीं आ सकता, इसलिए यह कंपनी गाय की चर्बी वाला गन्ध चिप्स में डालने लगी। यह गन्ध इस कंपनी का पूरी तरह से गुप्त अविष्कार है लेकिन प्राकृतिक है अर्थात् गाय की चर्बी से ही बना है।

यहां प्रसंगवश बता दूँ की इनके आलू भी कोई आम नहीं होते। यह फ्रांस की एक ख़ास नस्ल के आलु होते हैं जिन्हे अमेरिका के अयोवा प्रान्त में उगाया जाता है। और खेत से आने के बाद एक बहुत लम्बी प्रक्रिया के बाद ये आलु तलने के लिए तैयार हो पाते हैं। इसी कारण पूरे वर्ष चिप्स का स्वाद एक जैसा रहता है।…………इससे आगे यहाँ पढ़ें और इस लेख के पिछले अंश यहाँ

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